महेश कुशवंश

1 अक्तूबर 2015

भारत के लाल



गंगा में तैरेते हुये पार करना 
और  उसमे निहित  बाल सुलभ  चेस्ठा   ने  
तुम्हें  महान बना दिया  
तुम्हारे मन मंदिर मे  था साफ सफ़फाक  हृदय  
कलम दवात से पट्टी  पर  लिखे  
मास्टर जी के शब्द  
तुम्हारे मन मे कहीं  दूर तक लिख गए 
मानो  सफ़ेद अक्षर  से लिखे हों  
जिन्हें  
तुमने तो आत्मसात कर लिया  
ये देश नहीं   समझ  पाया  
और समझा भी तो 
जानबूझकर अंजान बना रहा  
तुम्हारी खिलौने सी  कद- काठी ने 
हिमालय छुआ  
तुम्हारे विशाल हृदय  मे  छिपे  मर्म को  देश ने समझा  
तुममे अपना भविस्य  ढूढ़ा  
तुम्हें सरताज  बना दिया  
तुमने माँ का कर्ज चुकाया  
और दुश्मन को छठी  का दूध याद दिला दिया 
जय जवान -जय किसान 
तुम्हारी साफ सफ़फाक छवि  का  
आईना बन गया  
मगर  तुम  चले गए   
विदेसी  माटी  पर  चुपचाप  
बे-आवाज़       
और हम रो भी नही पाये      
हमने  आज तक वो आंशू  सँजो कर रखे हैं  
भारत माँ के सच्चे  लाल
इस देश में  
तुम्हें फिर आना होगा   
देश की माटी  का  कर्ज जो बाकी  है  
हमपर  
हमें ही चुकाना होगा
ईस्वर से विनम्र  विनती है  
भारत   माँ को एक बार फिर वो  बहादुर  बेटा लौटा   दे  
ताकी माँ के सपूत  धो सकें अपने पाप   
चुका सकें आंशुओं के कर्ज
और सच्चे अर्थों मे बहा सकें 
सदियों से सूखे आंशू
और ये माँ 
पा सके कोई मुकाम 
और हम  
इस भारत के लाल पर  
बहा सकें रुके आंशू  
अपनी धरती पर 
तुम्हारे जन्म दिन के दिन   

-कुशवंश 


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